Wednesday, December 22, 2010

पुस्तक समीक्षा















पुस्तक
का नाम-परख
लेखिका-मालती जोशी
प्रकाशक-किताबघर प्रकाशन

रिश्ते सिर्फ खून के ही नहीं होते। कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते है या कह सकते है कि संजाग से बन जाते है। मालती जोशी द्वारा रचित पुस्तकपरखमें भी उन सभी मानवीय रिश्तों का जिक्र किया गया है जिनके साथ मनुष्य अपना जीवन यापित करता है। इस पुस्तक में चौदह कहानियां संग्रहित हैं अधिकांश कहानियां औरतो की अनाम पीड़ा, उसके जीवन की सुरक्षा और उसके मर्म की पड़ताल करने से ये अत्यंत विचारोतेजक और आंतरिक करूणा से भर गई है। ये करूणा उन पीड़ितों-शोषितों के स्वर से स्वर मिलाती है जो या तो न्याय की गुहार कर रहे है या नितांत चुप है। हमेशा से ही स्त्रियों का यह स्वभाव रहा है कि वह हर अनुचित बात को चुपचाप सह जाती है। पर यह भी सच है कि वक्त के साथ-साथ उनकी मानसिकता भी बदली है और अन्याय के खिलाफ ये आवाज़ उठाना भी सीख गई हैं। इसकी झलक इस पुस्तक में संग्रहितविषपायीऔरबहुत दूरियॉं हैं मेरे आसपासमें मिलती हैं।विषपायीकहानी में वीणा नामक स्त्री पात्र विभिन्न रूकावटों के बाद भी अपनी पढ़ाई पूरी करती है। साथ ही वह सारी जिम्मेदारियां निभाती है जो आमतौर पर एक पुत्र ही निभाता है। लेखिका ने स्त्री के सभी रूपो का वर्णन इस पुस्तक मे अपनी कहानियों के माध्यम से किया है। फिर वह स्त्री एक पत्नी के रूप मंे हो, बहन के रूप में, मॉं के रूप में या बेटी के रूप में।
पश्चिमी संस्कति का भारतीय संस्कति पर जो प्रभाव पड़ रहा है इसका उल्लेख भी लेखिका ने अपनी कहानियों मे किया है।अनिकेतऔरकुतो से सावधाननामक कहानियों में कुछ ऐसा ही उल्लेख लेखिका ने किया है। आज कुता पालना एक फैशन सा हो गया है और ऐसा करने से एक मध्यमवर्गीय परिवार भी उच्च श्रेणी मे सकता है। आज कुता पालना एक स्टेटस सिंबल बन गया है। वहींअनिकेतमे एक ऐसी स्त्री को दिखाया गया है जो भारतीय संस्कति और परम्पराओं को हेय द्रष्टि से देखती है और विवाह के बाद अपनी सास को वद्वाश्रम तक पहुंचा देती है।
आज के समय मे जब समाज अपनी दकियानूसी विचारधारा को बदल रहा है, ऐसे में आज भी कई परिवार है जो स्त्री को विवाहोपरांत बंधक बनाकर रखते है। ऐसा ही सजीव चित्रणबंधकनामक कहानी में मिलता है। जहां घर की बहू को दहेज के लिए परेशान किया जाता है और उसे पाई पाई के लिए मोहताज कर दिया जाता हैैै। अंत में उसे अपने परिवार, जहां उसका जन्म हुआ और पली-बढी, उसे सदा के लिए छोड़ देना पड़ता हैै। बेमेल विवाह की समस्या भारतीय समाज मे काफी समय पहले से ही व्याप्त है। इसी का एक उदाहरणपरखनाम की कहानी में मिलता है। किन्तु सीमा नामक एक पात्र को इस समस्या से जूझते हुए दिखाया गया है और वह इसमे कामयाब भी हो जाती हैै।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है किपरखमें स्त्री के सभी रूपों का समावेश है। पुस्तक का आवरण रंगीन और सुंदर है। पुस्तक की भाषा भी बेहद सरल है। विभिन्न परिस्थितियों में स्त्री की मानसिकता को जानने का अवसर यह पुस्तक हमें देती है।
पुस्तक समीक्षा
















पुस्तकः खेद नहीं है कटाक्ष
लेखिकाः मृदुला गर्ग
प्रकाशकः किताबघर प्रकाशन
मूल्यः दौ सो पच्चीस रूपय

व्यक्ति अपने जीवनकाल में अच्छे-बुरे हर तरह के अनुभव प्राप्त करता है। साथ ही उन्हें अन्य लोगों के साथ बांटना भी चाहता है।खेद नहीं है कटाक्षनामक पुस्तक में मृदुला गर्ग ने अपने जीवनकाल में प्राप्त किए गए अनुभवों को पाठको के साथ बांटा है। पुस्तक में संकलित सभी 58 लेखों में कटाक्ष संगृहित है और ये कटाक्ष व्यंग्य या हास्य से भिन्न है। ये सभी लेख पहले पहलइंडिया टुड नामक पत्रिका केकटाक्षस्तंभ के अंतर्गत प्रकाशित हुए है। अब पाठक इन कटाक्षपूर्ण लेखों को इस पुस्तक के माध्यम से भी पढ़ सकते है। पुस्तक में संगृहित कई लेख हिन्दी भाषा की दुर्व्यवस्था को लेकर लिखे गए है। जैसे- ‘मॉं बोली नहीं, पूत बोली’, ‘फिर वहीं हिंदी हिंदी’, ‘खत्म हुआ हिंदी का स्यापा’, औरखतरों के बीच भाषालेखों मे उन लोगो पर कटाक्ष किया गया है,जिन्होंने हिंदी को हिंग्लिश या हिंग्रेजी बना कर रख दिया है। भारत में पानी को लेकर भी कई समस्याएं है जो ज्यांे की त्योें बनी हुई है।अब क्या करें पानी पानी’, ‘दो नदियों का सचऔरसाफ पानी की साधनामक लेखों में पानी के अनियमित वितरण और पूजा पाठ के नाम पर नदियों को गंदा करने की प्रवृति को उजागर किया गया है। व्यक्ति अपने जीवनकाल में अनेक बुरे कर्म करता है और उसके प्रभाव को खत्म करने के लिए गंगा में डुबकी लगाता है। ऐसा करके वह अपने पाप तो धो लेता है पर नदियों को दूषित कर देता है। वहीं दूसरी ओर बिजली की अनियमित सप्लाई को लेकर भी एक लेखहर बार हम ही क्योंलिखा गया है जिसमें उन सभी सरकारी अफसरों पर कटाक्ष किया गया है जो ईश्वर की तरह अदृश्य है। ये अफसर बिना हाथ पैर चलाए सरकारी खजा़ने को खाली कर रहे है।
मोबाइल शोबाइलऔरबोल मुफत में बोलनामक लेखों में मोबाइल के प्रचलन उनके अनुचित प्रयोग को बतलाया गया है। लेखिका लिखती हैं-“किस्मत अच्छी होती है तो हमारे मोबाइल की बैटरी खल्लास हो जाती है, नही ंतो हमारी सारी सुबह और दोपहर खल्लास हो जाती है।लेखिका ने राजनीतिक विषय पर भी अनेक लेख लिखे है जिनमेंतू नहीं और सही’, नेता नाम त्याग काऔरमंत्री माने भगवानउल्लेखनीय है। इन सभी लेखों में उन सभी नेताओं पर कटाक्ष किया गया है जो केवल मतदान के समय ही जनता से रूबरू होते है और संपूर्ण शासनकाल में मिस्टर इंडिया की तरह गायब रहते है।
मृदुला गर्ग ने अपनी पुस्तक में लगभग सभी विषयों पर लेख लिखे हैै। फिर वह सामाजिक हो, रातनीतिक हो या आर्थिक। लेखिका ने अपने जीवनकाल में घटित विभिन्न घटनाओं को जैसे देखा और महसूस किया, उसे बिना किसी लाग लपेट के प्रस्तुत कर दिया। साथ ही अपनी भूूमिका में स्पष्ट कहा है-“हम स्वीकार करते है कि इनमें से कुछेक को पढ़कर आप तिलमिलाए तो हमे खेद नहीं होगा। पढ़-गुन लेने पर, हमसे आधी भी खलबली आपके ज़हन में मच पाई तो हम धन्य महसूस करेंगे।यदि बात पुस्तक के बाह्य सौन्दर्य की करे तो बाहरी आवरण रंगीन और बेहद सुंदर है। भाषा सरल पर कटाक्षपूर्ण है। प्रत्येक लेख का विषय इतना प्रांसगिक हैं कि पाठक सभी लेखों को पढ़ने पर मजबूर हो जाएगा।