Wednesday, December 22, 2010

पुस्तक समीक्षा















पुस्तक
का नाम-परख
लेखिका-मालती जोशी
प्रकाशक-किताबघर प्रकाशन

रिश्ते सिर्फ खून के ही नहीं होते। कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते है या कह सकते है कि संजाग से बन जाते है। मालती जोशी द्वारा रचित पुस्तकपरखमें भी उन सभी मानवीय रिश्तों का जिक्र किया गया है जिनके साथ मनुष्य अपना जीवन यापित करता है। इस पुस्तक में चौदह कहानियां संग्रहित हैं अधिकांश कहानियां औरतो की अनाम पीड़ा, उसके जीवन की सुरक्षा और उसके मर्म की पड़ताल करने से ये अत्यंत विचारोतेजक और आंतरिक करूणा से भर गई है। ये करूणा उन पीड़ितों-शोषितों के स्वर से स्वर मिलाती है जो या तो न्याय की गुहार कर रहे है या नितांत चुप है। हमेशा से ही स्त्रियों का यह स्वभाव रहा है कि वह हर अनुचित बात को चुपचाप सह जाती है। पर यह भी सच है कि वक्त के साथ-साथ उनकी मानसिकता भी बदली है और अन्याय के खिलाफ ये आवाज़ उठाना भी सीख गई हैं। इसकी झलक इस पुस्तक में संग्रहितविषपायीऔरबहुत दूरियॉं हैं मेरे आसपासमें मिलती हैं।विषपायीकहानी में वीणा नामक स्त्री पात्र विभिन्न रूकावटों के बाद भी अपनी पढ़ाई पूरी करती है। साथ ही वह सारी जिम्मेदारियां निभाती है जो आमतौर पर एक पुत्र ही निभाता है। लेखिका ने स्त्री के सभी रूपो का वर्णन इस पुस्तक मे अपनी कहानियों के माध्यम से किया है। फिर वह स्त्री एक पत्नी के रूप मंे हो, बहन के रूप में, मॉं के रूप में या बेटी के रूप में।
पश्चिमी संस्कति का भारतीय संस्कति पर जो प्रभाव पड़ रहा है इसका उल्लेख भी लेखिका ने अपनी कहानियों मे किया है।अनिकेतऔरकुतो से सावधाननामक कहानियों में कुछ ऐसा ही उल्लेख लेखिका ने किया है। आज कुता पालना एक फैशन सा हो गया है और ऐसा करने से एक मध्यमवर्गीय परिवार भी उच्च श्रेणी मे सकता है। आज कुता पालना एक स्टेटस सिंबल बन गया है। वहींअनिकेतमे एक ऐसी स्त्री को दिखाया गया है जो भारतीय संस्कति और परम्पराओं को हेय द्रष्टि से देखती है और विवाह के बाद अपनी सास को वद्वाश्रम तक पहुंचा देती है।
आज के समय मे जब समाज अपनी दकियानूसी विचारधारा को बदल रहा है, ऐसे में आज भी कई परिवार है जो स्त्री को विवाहोपरांत बंधक बनाकर रखते है। ऐसा ही सजीव चित्रणबंधकनामक कहानी में मिलता है। जहां घर की बहू को दहेज के लिए परेशान किया जाता है और उसे पाई पाई के लिए मोहताज कर दिया जाता हैैै। अंत में उसे अपने परिवार, जहां उसका जन्म हुआ और पली-बढी, उसे सदा के लिए छोड़ देना पड़ता हैै। बेमेल विवाह की समस्या भारतीय समाज मे काफी समय पहले से ही व्याप्त है। इसी का एक उदाहरणपरखनाम की कहानी में मिलता है। किन्तु सीमा नामक एक पात्र को इस समस्या से जूझते हुए दिखाया गया है और वह इसमे कामयाब भी हो जाती हैै।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है किपरखमें स्त्री के सभी रूपों का समावेश है। पुस्तक का आवरण रंगीन और सुंदर है। पुस्तक की भाषा भी बेहद सरल है। विभिन्न परिस्थितियों में स्त्री की मानसिकता को जानने का अवसर यह पुस्तक हमें देती है।
पुस्तक समीक्षा
















पुस्तकः खेद नहीं है कटाक्ष
लेखिकाः मृदुला गर्ग
प्रकाशकः किताबघर प्रकाशन
मूल्यः दौ सो पच्चीस रूपय

व्यक्ति अपने जीवनकाल में अच्छे-बुरे हर तरह के अनुभव प्राप्त करता है। साथ ही उन्हें अन्य लोगों के साथ बांटना भी चाहता है।खेद नहीं है कटाक्षनामक पुस्तक में मृदुला गर्ग ने अपने जीवनकाल में प्राप्त किए गए अनुभवों को पाठको के साथ बांटा है। पुस्तक में संकलित सभी 58 लेखों में कटाक्ष संगृहित है और ये कटाक्ष व्यंग्य या हास्य से भिन्न है। ये सभी लेख पहले पहलइंडिया टुड नामक पत्रिका केकटाक्षस्तंभ के अंतर्गत प्रकाशित हुए है। अब पाठक इन कटाक्षपूर्ण लेखों को इस पुस्तक के माध्यम से भी पढ़ सकते है। पुस्तक में संगृहित कई लेख हिन्दी भाषा की दुर्व्यवस्था को लेकर लिखे गए है। जैसे- ‘मॉं बोली नहीं, पूत बोली’, ‘फिर वहीं हिंदी हिंदी’, ‘खत्म हुआ हिंदी का स्यापा’, औरखतरों के बीच भाषालेखों मे उन लोगो पर कटाक्ष किया गया है,जिन्होंने हिंदी को हिंग्लिश या हिंग्रेजी बना कर रख दिया है। भारत में पानी को लेकर भी कई समस्याएं है जो ज्यांे की त्योें बनी हुई है।अब क्या करें पानी पानी’, ‘दो नदियों का सचऔरसाफ पानी की साधनामक लेखों में पानी के अनियमित वितरण और पूजा पाठ के नाम पर नदियों को गंदा करने की प्रवृति को उजागर किया गया है। व्यक्ति अपने जीवनकाल में अनेक बुरे कर्म करता है और उसके प्रभाव को खत्म करने के लिए गंगा में डुबकी लगाता है। ऐसा करके वह अपने पाप तो धो लेता है पर नदियों को दूषित कर देता है। वहीं दूसरी ओर बिजली की अनियमित सप्लाई को लेकर भी एक लेखहर बार हम ही क्योंलिखा गया है जिसमें उन सभी सरकारी अफसरों पर कटाक्ष किया गया है जो ईश्वर की तरह अदृश्य है। ये अफसर बिना हाथ पैर चलाए सरकारी खजा़ने को खाली कर रहे है।
मोबाइल शोबाइलऔरबोल मुफत में बोलनामक लेखों में मोबाइल के प्रचलन उनके अनुचित प्रयोग को बतलाया गया है। लेखिका लिखती हैं-“किस्मत अच्छी होती है तो हमारे मोबाइल की बैटरी खल्लास हो जाती है, नही ंतो हमारी सारी सुबह और दोपहर खल्लास हो जाती है।लेखिका ने राजनीतिक विषय पर भी अनेक लेख लिखे है जिनमेंतू नहीं और सही’, नेता नाम त्याग काऔरमंत्री माने भगवानउल्लेखनीय है। इन सभी लेखों में उन सभी नेताओं पर कटाक्ष किया गया है जो केवल मतदान के समय ही जनता से रूबरू होते है और संपूर्ण शासनकाल में मिस्टर इंडिया की तरह गायब रहते है।
मृदुला गर्ग ने अपनी पुस्तक में लगभग सभी विषयों पर लेख लिखे हैै। फिर वह सामाजिक हो, रातनीतिक हो या आर्थिक। लेखिका ने अपने जीवनकाल में घटित विभिन्न घटनाओं को जैसे देखा और महसूस किया, उसे बिना किसी लाग लपेट के प्रस्तुत कर दिया। साथ ही अपनी भूूमिका में स्पष्ट कहा है-“हम स्वीकार करते है कि इनमें से कुछेक को पढ़कर आप तिलमिलाए तो हमे खेद नहीं होगा। पढ़-गुन लेने पर, हमसे आधी भी खलबली आपके ज़हन में मच पाई तो हम धन्य महसूस करेंगे।यदि बात पुस्तक के बाह्य सौन्दर्य की करे तो बाहरी आवरण रंगीन और बेहद सुंदर है। भाषा सरल पर कटाक्षपूर्ण है। प्रत्येक लेख का विषय इतना प्रांसगिक हैं कि पाठक सभी लेखों को पढ़ने पर मजबूर हो जाएगा।

Thursday, September 2, 2010

मेरी हरिद्वार-ऋषिकेश यात्रा
















जब व्‍यक्ति के मन में कई प्रश्‍न हों और मन विचलित हो तो उसे एकांत व शांति की जरूरत होती है। मेरे जीवन में भी एक समय ऐसा आया जब ज़हन में कई प्रश्न थे और मन शांत नहीं था। इन सभी प्रश्‍नों का सरोकार जीवन के प्रति मेरे उत्‍तरदायित्‍व से था। ऐसे समय में मुझे थोडे वक्‍त की जरूरत थी, साथ ही शांति की भी। तभी मुझे पता चला कि मेरे अंकल आंटी शांतिकुंज - ऋषिकेश की यात्रा पर जा रहें हैं। उन्‍होंने मुझे भी साथ चलने के लिए पूछा और मैंने तुरंत चलने के लिए हां कर दी। मुझे इसका आभास हो गया था कि मेरे मन में उठे प्रश्‍नों का जबाब मुझे वहीं जाकर मिल सकता है। मैंने अपने माता-पिता की अनुमति लेकर चलने की तैयारी शुरू कर दी। प्रात: 6 बजे हम सभी अपनी गाडी से शांतिकुंज के लिए रवाना हो गए। हमने कपडे और खाने-पीने के समान के अलावा साथ में कुछ दवाईयां भी ले रखी थी। प्रात: काल का समय था और ड्राइवर ने गाडी में भजन चला रखा था।
मेरे विचलित और परेशान मन को उसी समय से शांति और सुकून मिलने लगा था। करीब 9 बजे खतौली पहुंचकर हमने गाडी को थोडा विराम दिया। वहां हम चीतल नामक एक बडे होटल में नाश्‍ता करने गए। उसी समय एक अजीब शोर सुनाई दिया। फिर पता चला कि कांग्रेस पार्टी के एक बडे नेता जगदिश टाइटलर वहां आ रहें हैं बाहर आकर देखा कडी सुरक्षा के बीच टाइटलर जी अंदर पधार रहें है। उनके लिए पहले से ही एक टेबल बुक था जहां उन्‍होंने नाश्‍ता किया। इसके बाद हम सभी वापस गाडी में आ गये । ड्राइवर ने भी पूरी रफ्तार से गाडी बढाई और दोपहर 1 बजे तक हमें शांतिकुंज पहुंचा दिया। शांतिकुंज हरिद्वार से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वहां बेहद शांति और सुकून है। मेरे अंकल शांतिकुंज समिति के सदस्‍य हैं इसलिए हमें तुरंत कमरा मिल गया। वहां जाकर हम सभी ने स्‍नान किया और कुछ देर विश्राम किया।
विश्राम के बाद हम सभी हर की पौडी ( गंगा घाट) पहुंचे। वहां हम सभी ने स्‍नान किया। कहते हैं कि गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। कुछ देर पश्‍चात ही गंगा मैया की आरती शुरू हो गई। सभी भक्‍तजन घाट के करीब आकर खडे हो गए। वहां की भीड देखकर मेरा मन घबराने लगा परन्‍तु जैसे ही आरती शुरू हुई सभी भक्‍तजन भक्ति में लीन हो गए। मै भी ऐसी भव्‍य आरती देखकर अपने आप को रोक न पाई और तुरंत घाट के करीब जाकर आरती में शामिल हो गई।
10 मिनट की आरती में ऐसा लगा ईश्‍वर से मेरा साक्षात्‍कार हो गया हो और मेरी आंखो में आंसू छलक आए। ऐसा इसलिए हुआ क्‍योंकि मैं जिन जिज्ञासाओं और प्रश्‍नों को लेकर यहां आई थी, मुझे उनके जबाब मिलनें लगे थे। मुझे जीवन का एक नया लक्ष्‍य मिल रहा था। आरती के बाद हम सभी ने आम के पत्‍तों में फूल व दीपक लिए और पूरी श्रद्धा के साथ गंगा में उन्‍हें प्रवाहित कर दिया। अंधेरे में जलते दीपक ऐसे लग रहे थे, मानों वे जीवन को एक दिशा व लक्ष्‍य दे रहें हों। उस दृश्‍य को देखकर ऐसे सुख का अनुभव हो रहा था जैसे एक बालक को अपनी मां के गोद में बैठकर मिलता है।
इसके पश्‍चात हम वापस शांतिकुंज आ गये। पूरे दिन सफर करने के बाद हम इतने थक गये थे कि बिस्‍तर पर जाते ही नींद आ गयी। प्रात:काल 5 बजे उठकर हम सभी ने स्‍नान किया और हवन में शामिल होनें चले गए। वहां गायत्री मंत्र का जाप हो रहा था। भीड अधिक होने के कारण हमें हवन करने के लिए 1 घंटे तक इंतजार करना पडा। पंडितजी ने बताया कि जो व्‍यक्ति हवन में किसी कारण शामिल नहीं हो पाता है तो यदि वह हवन कुंड की आठ परिक्रमा पूरी कर ले तो वही फल उसे मिलता है जो हवन करने वाले को मिलता है। इसके बाद हम शांतिकुंज के संस्‍थापक श्री शंकराचार्य जी और वन्‍दनीय माता जी के समाध‍ि पर गए।
शांतिकुंज से ही हम हरिद्वार में स्थित विभिन्‍न मंदिरों में गए। सर्वप्रथम हम भारतमाता मंदिर गए। इसकी सात मंजिलें है। इसमें विभिन्‍न देवी देवताओं, स्‍वतंत्रता सेनानियों, धर्म गुरूओं और कबीर जैसे महीन संतों की मूर्तियां हैं। इसके बाद हम ब्रह्यवर्चस्‍व मंदिर और वैष्‍णों देवी मंदिर गए। वैष्‍णों देवी का मंदिर स्‍वर्गीय गुलशन कुमार द्वारा बनवाया गया है। हरिद्वार में देव संस्‍कृति नामक एक विश्‍वविद्यालय भी है जो शंकराचार्य द्वारा स्‍थापित किया गया है। इसमें मुख्‍य रूप से योग और आयुर्वेद की शिक्षा दी जाती है। इसकी शाखाएं अन्‍य राज्‍यों में भी है।
इसके बाद हम विक्रम द्वारा ऋषिकेश पहुंचे। विक्रम एक वाहन है जो ऑटो रिक्‍शा के समान दिखता है। हम सभी सप्‍तऋषि आश्रम गए। यह आश्रम गंगा घट के किनारे ही बसा है। आश्रम से घाट का नजारा अदभुत दिखाई पडता है। सोनी जी इस आश्रम को चलातें हैं। वैसे तो वह विवाहित हैं पर अब वह अपना जीवन ईश्‍वर की अराधाना व तपस्‍या में व्‍यतीत करते हैं। संध्‍या के समय सोनी जी ने हमें कई विषयों पर महत्‍वपूर्ण बातें बताई जैसे - जीवन क्‍या है, मृत्‍यु क्‍या है, ईश्‍वर का अस्तित्‍व क्‍या है और मानव जीवन के रूप मे हमारे लक्ष्‍य क्‍या हैं? जि‍न प्रश्‍नों व जिज्ञासाओं को लेकर मै घर से निकली थी उनका जवाब मुझे सोनीजी के आश्रम में उनके प्रवचन द्वारा मिल चुके थे। उस दिन एक अनोखी मुस्‍कुराहट मेरे चेहरे पर थी, जिसे मेरे अंकल-आंटी ने भी पहचान लिया। इसके पश्‍चात हम वापस शांतिकुंज पहुंचे जहां गाडी हमारा इंतजार कर रही थी। हम वापस दिल्‍ली आ गए। हरिद्वार और शांतिकुंज ण्‍ेसे शहर हैं जो अध्‍यात्मिक शांति के लिए काफी महत्‍वपूर्ण हैं। यही कारण है कि मैं मन में एक अजीब अशांति और बोझ को लेकर गई थी और एक अनोखी मुस्‍कान चेहरे पर लिए लौटी थी।


Tuesday, August 31, 2010

अन्जान सा रिश्ता













रिश्ते सिर्फ खून के ही नहीं होते. कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते है या कह सकते है कि संजोग से बन जाते है और ये रिश्ते उन्ही से बनते है जिनसे हमे स्नेह, प्रेम, और आदर मिलता है. इस भागदौड़ भरी जिन्दगी में जब अपनों के पास समय नहीं है ऐसे में कोई अन्जान व्यक्ति आपको वो सब दे जिसकी सिर्फ अपनों से ही पाने कि उम्मीद हो तब वो व्यक्ति अन्जान होकर आपके जीवन का एक अहम् हिस्सा बन जाता है.साथ ही उसे खो देने का डर हमेशा मन में बना रहता है.

बात पिछले वर्ष की है. बसों में सफ़र करना शुरू ही किया था. मन में एक डर था क्योंकि इस से पहले बसों में सफ़र करने का मौका ही नहीं मिला था. घर से निकलने से पहले पिताजी हिदायतें देते कि बस में कैसे चड़ना है, कैसे उतरना है, किस जगह बैठना है आदि. इस तरह बस में आना जाना शुरू हुआ और धीरे-धीरे मन का डर निकलता गया. डर की बात करे तो वो एक अन्जान डर था जिसे बताना थोडा मुश्किल है पर एक अन्जान व्यक्ति के कारण अब वो डर भी निकल गया. पूरे सफ़र के दौरान ऐसा प्रतीत होता कि एक रक्षक आपके साथ है और वो आपके साथ कुछ बुरा होने ही नहीं देगा.बस में चढ़ते ही एक अंजान हाथ सामने जाता जिसमे पानी की एक बोतल हुआ करती. ये देखकर एक मुस्कान चेहरे पर जाती कि बिना जाने पहचाने वह स्वयं समझ जाता कि मैडम जी को प्यास लगी है.वह हमेशा "मैडम जी" कहकर पुकारता था और ये शब्द सुनकर चेहरे कि मुस्कान और बढ़ जाती क्योंकि उसमे आदर और सम्मान कि भावना जो हुआ करती थी. बात सिर्फ यही ख़त्म नहीं होती. जब भरी गर्मी में सूरज की किरणे खिड़की के शीशे को चीरते हुए मुझ तक पहुँचती तो चुपचाप एक पुराना अखबार हाथ में लिए सीट की और बड़ा चला आता और उन चमकती किरणों को रोक देता. इतना करने के बाद मासूमियत से पूछता कि अब ठीक है ना मैडम जी.! और मैं मुस्कुरा कर उसे धन्यवाद दे देती.

धीरे-धीरे बातों का सिलसिला भी शुरू हुआ.चूंकि वह अपने माता-पिता से दूर दिल्ली जैसे बड़े शहर में अकेला रह रहा था तो अपनी हर छोटी बड़ी बात बताता. साथ ही जरुरत पढने पर किसी मुद्दे पर राय भी मांग लिया करता था. पर एक दिन अचानक वो अन्जान व्यक्ति जिससे एक अन्जाना सा रिश्ता बन गया था, कहीं गायब हो गया. दुआ करती कि इश्वर वो जहाँ भी हो स्वस्थ हो और खुश हो.. बस में चढ़ते ही नजरे उस अन्जान हाथ को तलाशती जो पानी की बोतल लिए अचानक से उसकी ओर बढ़ जाते थे. पर वो दुबारा सामने नहीं आया.

लेकिन इश्वर कि लीला देखिये दो महीने बाद वह फिर सामने आया ओर उसके मुख से वही दो शब्द सुनकर दिल भर आया. ये दो शब्द "मैडम जी" सुनने में बेहद साधारण है पर इनके अंदर छिपा प्रेम ओर आदर असाधारण है. मैंने निश्चय कर लिया कि अब इस अन्जान रिश्ते को एक नाम दे दिया जाए ताकि वो जीवन भर मेरे साथ, मेरे जीवन का एक अहम् हिस्सा बनकर रहे. कुछ समय पहले तक दोनों के बीच जो एक अन्जान सा रिश्ता था आज उस रिश्ते ने एक नाम पा लिया है. आज वो मेरा छोटा पर जिम्मेदार भाई बनकर मेरे साथ है. रिश्ते सिर्फ खून से ही नहीं बनते. रिश्ते इंसानियत ओर भावनाओ से भी बनते है फिर चाहे वो बस का एक मामूली कंडक्टर ही क्यों ना हो...

Friday, August 27, 2010

युवा और अवसाद













आज शिक्षा और रोज़गार के क्षेत्र में प्रतियोगिता का स्तर बेहद बड़ गया है. इस कारण माता-पिता का दबाव बच्चो पर लगातार बढता जा रहा है. आज युवा वर्ग इस दबाव के कारण साईक्लोजिकल दिसोर्डर और अवसाद का शिकार हो रहा है.युवाओ पर सिर्फ माता-पिता का ही दबाव नहीं है बल्कि सरकार की शेक्षिक और रोज़गारिये नीतियों का भी दबाव है. भले ही आज दसवीं और बाहरवीं में ग्रेडिंग प्रणाली लागू कर दी गयी है परन्तु छात्र मनपसंद विषय मिलने योग्यतानुसार अवसर मिलने पर डिप्रेशन में जाते है और आत्महत्या तक कर लेते है. इन युवाओं को देश का सुनहरा भविष्य कहा जाता है और आज इन्ही युवाओ को आत्महत्या जैसे गैरकानूनी कार्य करने से रोकने में हम नाकाम है. माता-पिता को भी इस बात को समझना होगा कि हर बच्चे का मानसिक और शारीरिक स्तर भिन्न होता है उन्हें उनकी रूचि के अनुसार पढने बढने दिया जाये. साथ ही सरकार को भी इस प्रकार की कारगर नीतियों का निर्माण करना चाहिए जिसमे प्रत्येक छात्र को समान योग्यतानुसार अवसर प्राप्त हो सके.

Thursday, August 26, 2010

भारतीय राजनीति की सिरमोर-सोनिया गाँधी












कविवर पन्त ने नारी के अनेक रूपों का वर्णन करते हुए कहा है- "देवी, माँ, सहचरी, प्राण". परन्तु वास्तव में इस पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों को सदेव असहायता और दूसरों पर वासवत निर्भरता की शिक्षा दी गयी है. यही शिक्षा देकर पुरुष युगों से नारी पर शासन करता रहा है. किन्तु यह बात भी सच है कि समय के साथ साथ पुरुषों का स्त्री के प्रति यह नजरिया बदला है और पुरुषों के इस नज़रिए को बदलने का श्रेय स्वयं नारी को ही जाता है. सर्वप्रथम नारी ने पुरुषों के समान ही शिक्षा प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया और आज शिक्षा के माध्यम से ही वह हर शेत्र में अपनी एक अलग पहचान बना रही है. राजनीति एक ऐसा शेत्र है जहाँ अधिकांश नेता पुरुष ही होते है परन्तु वर्तमान समय में अनेक ऐसे उदाहरण हैं जो इस बात को साबित करते हैं कि आज की नारी राजनीति में बढ चढ़ कर हिस्सा ले रही है. इस सूची में अनेक नाम है जैसे सोनिया गाँधी, प्रतिभा पाटिल, मीरा कुमार, सुषमा स्वराज आदि. प्रथम लोकसभा चुनाव जो १९५२ में संपन्न हुए थे, में कुल ४९९ सीटों में महिलाओ कि संख्या मात्र २२ थी. इसके बाद के लोकसभा के चुनावों में इनकी संख्या बड़ी है. १३वी लोकसभा चुनावो में कुल ५४३ सीटों में महिलाओ कि संख्या ४२ थी. वर्ष २००९ में भारतीय संसद में ५८ महिलाएं लेजिस्लेटर के पद पर नियुक्त हुई परन्तु अब भी संसद में विजयी महिलाओं का प्रतिशत १० से भी कम है.
जब हम भारतीय राजनीति क़ी बात बात करते है तो आँखों के सामने एक प्रतिबिंब छा जाता है और वह कोई और नहीं बल्कि सोनिया गाँधी का बिम्ब होता है. सोनिया गाँधी कांग्रेस पार्टी क़ी अध्यक्ष हैं. राजीव गाँधी से विवाह करने के पश्चात् सब कुछ छोड़कर हिन्दुस्तान गयीं और राजीव गाँधी क़ी हत्या के बाद स्वयं राजनीति में आने का फैसला किया. विपक्षी पार्टियों को ये कतई मंजूर नहीं था कई एक विदेशी महिला भारत आकर देश की राजनीति का हिस्सा बने परन्तु उन्होंने तो देश सेवा का प्रण लिया था और यह तभी संभव था जब वह राजनीति में आतीं. .उनका जन्म दिसम्बर १९४६ में इटली के वनिटो शहर में हुआ. १९६९ में राजीव गाँधी से विवाह कर वह भारत आयीं. १९९८ में सोनिया गाँधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं. २००४ के चुनावों में सोनिया गाँधी रायबरेली से बड़े अंतराल से जीती. उस समय उन्हें प्रधानमंत्री के पद पर देखा जा रहा था परन्तु विपक्षी पार्टियों ने उन्हें विदेशी मूल का कहकर इस पद पर आने पर जोर दिया. यहाँ तक की भारतीय नागरिकता एक्ट के सेक्शन के तहत इस बात का दावा किया कि वे विदेशी मूल कि हैं और भारत के प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त नहीं हो सकती परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को ख़ारिज कर दिया. चुनाव के कुछ समय बाद सोनिया गाँधी ने १८ मई २००४ को प्रधानमंत्री पद के लिए नियुक्त किया. ऐसा करके उन्होंने इस बात को सिद्ध किया कि वह भारतीय राजनीति में मात्र लाभ कमाने के उद्देश्य से नहीं आयीं है बल्कि सच्ची राजनीति और देशसेवा करने आयीं हैं. चुनाव से पहले घोषणापत्र में उन्होंने इस और संकेत कर दिया था कि वह प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहती.UPA के अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजग़ार योजना और सूचना के अधिकार अधिनियम के शेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सोनिया गाँधी के प्रतिनिधित्व में UPA सरकार ने २००९ के चुनाव में २०६ लोकसभा सीटे जीती जो बहुमत के काफी करीब थी. सोनिया गाँधी ने सूखा पीड़ितों और गरीबों के लिए भी सराहनीय कार्य किये है. संसद के सदस्यों कि आय का २० प्रतिशत भाग सूखा प्रभावित पीड़ितों के लिए इकठ्ठा किया. ऐसे कई उदाहरण है जो यह साबित करते हैं कि सोनिया गाँधी उन सभी महिलाओ के लिए प्रेरणा है जो भारतीय राजनीति में आकर देश के विकास और देश के हित के लिए कार्य करना चाहती हैं. २००४ में फ़ोर्ब्स मेग्जिन ने सोनिया गाँधी को विश्व की शक्तिशाली महिलाओं में तीसरा स्थान प्रदान किया और २००७ में सातवाँ स्थान प्रदान किया. यदि भविष्य में सोनिया गाँधी प्रधानमंत्री बनती हैं तो वह नेहरु-गाँधी परिवार की चौथी सदस्य होंगी जो जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी के बाद चौथी प्रधानमंत्री होंगी.
भारतीय राजनीति में सोनिया गाँधी एक आदर्श हैं. वही दूसरी ओर अन्य कई उदाहरण हमारे सामने है जो यह सिद्ध करते हैं कि आज महिलाएं राजनीति में एक अलग स्थान बना रही हैं. जिनमे मीरा कुमार (लोकसभा की पहली महिला स्पीकर) और प्रतिभा पाटिल(देश की पहली महिला राष्ट्रपति) का नाम सर्वोपरि है.वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर यह कहा जा सकता है कि भविष्य में महिलाएं राजनीति में बढ चढ़ कर हिस्सा लेंगी और देश हित के लिए कार्य करेंगी.

Saturday, August 14, 2010

न जाने क्यों......














जाने क्यों,
सब कुछ ख़त्म होता नज़र आ रहा है,
अपनों से दूर जाने का गम सता रहा है...

भला कैसी है ये रीत,
जो अपनों को दूर और गैरो को पास ला रहा है...

याद आएगा हर वो पल,
जिसमे थी खुशियाँ और थोड़े गम...

तड़प उठेगा ये दिल,
जब याद आयेगी माँ की गोद और प्यार भरी पिता की ओट...

याद आएगा हर वो लम्हा,
जो गुजरा दोस्तों के साथ,
जिसमे थी थोड़ी मस्ती और थोडा प्यार...

बस कुछ दिन और,
सब कुछ बदल जायेगा,
जीने का सलिखा और नज़रिया भी बदल जायेगा...

जहाँ बनानी होगी एक पहचान,
नहीं होगी वो स्वयं की पहचान,
किसी और की दी होगी वो पहचान...

(विवाह से पहले हर लड़की के भीतर ऐसी ही भावनाये उमड़ती है)