Tuesday, August 31, 2010

अन्जान सा रिश्ता













रिश्ते सिर्फ खून के ही नहीं होते. कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते है या कह सकते है कि संजोग से बन जाते है और ये रिश्ते उन्ही से बनते है जिनसे हमे स्नेह, प्रेम, और आदर मिलता है. इस भागदौड़ भरी जिन्दगी में जब अपनों के पास समय नहीं है ऐसे में कोई अन्जान व्यक्ति आपको वो सब दे जिसकी सिर्फ अपनों से ही पाने कि उम्मीद हो तब वो व्यक्ति अन्जान होकर आपके जीवन का एक अहम् हिस्सा बन जाता है.साथ ही उसे खो देने का डर हमेशा मन में बना रहता है.

बात पिछले वर्ष की है. बसों में सफ़र करना शुरू ही किया था. मन में एक डर था क्योंकि इस से पहले बसों में सफ़र करने का मौका ही नहीं मिला था. घर से निकलने से पहले पिताजी हिदायतें देते कि बस में कैसे चड़ना है, कैसे उतरना है, किस जगह बैठना है आदि. इस तरह बस में आना जाना शुरू हुआ और धीरे-धीरे मन का डर निकलता गया. डर की बात करे तो वो एक अन्जान डर था जिसे बताना थोडा मुश्किल है पर एक अन्जान व्यक्ति के कारण अब वो डर भी निकल गया. पूरे सफ़र के दौरान ऐसा प्रतीत होता कि एक रक्षक आपके साथ है और वो आपके साथ कुछ बुरा होने ही नहीं देगा.बस में चढ़ते ही एक अंजान हाथ सामने जाता जिसमे पानी की एक बोतल हुआ करती. ये देखकर एक मुस्कान चेहरे पर जाती कि बिना जाने पहचाने वह स्वयं समझ जाता कि मैडम जी को प्यास लगी है.वह हमेशा "मैडम जी" कहकर पुकारता था और ये शब्द सुनकर चेहरे कि मुस्कान और बढ़ जाती क्योंकि उसमे आदर और सम्मान कि भावना जो हुआ करती थी. बात सिर्फ यही ख़त्म नहीं होती. जब भरी गर्मी में सूरज की किरणे खिड़की के शीशे को चीरते हुए मुझ तक पहुँचती तो चुपचाप एक पुराना अखबार हाथ में लिए सीट की और बड़ा चला आता और उन चमकती किरणों को रोक देता. इतना करने के बाद मासूमियत से पूछता कि अब ठीक है ना मैडम जी.! और मैं मुस्कुरा कर उसे धन्यवाद दे देती.

धीरे-धीरे बातों का सिलसिला भी शुरू हुआ.चूंकि वह अपने माता-पिता से दूर दिल्ली जैसे बड़े शहर में अकेला रह रहा था तो अपनी हर छोटी बड़ी बात बताता. साथ ही जरुरत पढने पर किसी मुद्दे पर राय भी मांग लिया करता था. पर एक दिन अचानक वो अन्जान व्यक्ति जिससे एक अन्जाना सा रिश्ता बन गया था, कहीं गायब हो गया. दुआ करती कि इश्वर वो जहाँ भी हो स्वस्थ हो और खुश हो.. बस में चढ़ते ही नजरे उस अन्जान हाथ को तलाशती जो पानी की बोतल लिए अचानक से उसकी ओर बढ़ जाते थे. पर वो दुबारा सामने नहीं आया.

लेकिन इश्वर कि लीला देखिये दो महीने बाद वह फिर सामने आया ओर उसके मुख से वही दो शब्द सुनकर दिल भर आया. ये दो शब्द "मैडम जी" सुनने में बेहद साधारण है पर इनके अंदर छिपा प्रेम ओर आदर असाधारण है. मैंने निश्चय कर लिया कि अब इस अन्जान रिश्ते को एक नाम दे दिया जाए ताकि वो जीवन भर मेरे साथ, मेरे जीवन का एक अहम् हिस्सा बनकर रहे. कुछ समय पहले तक दोनों के बीच जो एक अन्जान सा रिश्ता था आज उस रिश्ते ने एक नाम पा लिया है. आज वो मेरा छोटा पर जिम्मेदार भाई बनकर मेरे साथ है. रिश्ते सिर्फ खून से ही नहीं बनते. रिश्ते इंसानियत ओर भावनाओ से भी बनते है फिर चाहे वो बस का एक मामूली कंडक्टर ही क्यों ना हो...

Friday, August 27, 2010

युवा और अवसाद













आज शिक्षा और रोज़गार के क्षेत्र में प्रतियोगिता का स्तर बेहद बड़ गया है. इस कारण माता-पिता का दबाव बच्चो पर लगातार बढता जा रहा है. आज युवा वर्ग इस दबाव के कारण साईक्लोजिकल दिसोर्डर और अवसाद का शिकार हो रहा है.युवाओ पर सिर्फ माता-पिता का ही दबाव नहीं है बल्कि सरकार की शेक्षिक और रोज़गारिये नीतियों का भी दबाव है. भले ही आज दसवीं और बाहरवीं में ग्रेडिंग प्रणाली लागू कर दी गयी है परन्तु छात्र मनपसंद विषय मिलने योग्यतानुसार अवसर मिलने पर डिप्रेशन में जाते है और आत्महत्या तक कर लेते है. इन युवाओं को देश का सुनहरा भविष्य कहा जाता है और आज इन्ही युवाओ को आत्महत्या जैसे गैरकानूनी कार्य करने से रोकने में हम नाकाम है. माता-पिता को भी इस बात को समझना होगा कि हर बच्चे का मानसिक और शारीरिक स्तर भिन्न होता है उन्हें उनकी रूचि के अनुसार पढने बढने दिया जाये. साथ ही सरकार को भी इस प्रकार की कारगर नीतियों का निर्माण करना चाहिए जिसमे प्रत्येक छात्र को समान योग्यतानुसार अवसर प्राप्त हो सके.

Thursday, August 26, 2010

भारतीय राजनीति की सिरमोर-सोनिया गाँधी












कविवर पन्त ने नारी के अनेक रूपों का वर्णन करते हुए कहा है- "देवी, माँ, सहचरी, प्राण". परन्तु वास्तव में इस पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों को सदेव असहायता और दूसरों पर वासवत निर्भरता की शिक्षा दी गयी है. यही शिक्षा देकर पुरुष युगों से नारी पर शासन करता रहा है. किन्तु यह बात भी सच है कि समय के साथ साथ पुरुषों का स्त्री के प्रति यह नजरिया बदला है और पुरुषों के इस नज़रिए को बदलने का श्रेय स्वयं नारी को ही जाता है. सर्वप्रथम नारी ने पुरुषों के समान ही शिक्षा प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया और आज शिक्षा के माध्यम से ही वह हर शेत्र में अपनी एक अलग पहचान बना रही है. राजनीति एक ऐसा शेत्र है जहाँ अधिकांश नेता पुरुष ही होते है परन्तु वर्तमान समय में अनेक ऐसे उदाहरण हैं जो इस बात को साबित करते हैं कि आज की नारी राजनीति में बढ चढ़ कर हिस्सा ले रही है. इस सूची में अनेक नाम है जैसे सोनिया गाँधी, प्रतिभा पाटिल, मीरा कुमार, सुषमा स्वराज आदि. प्रथम लोकसभा चुनाव जो १९५२ में संपन्न हुए थे, में कुल ४९९ सीटों में महिलाओ कि संख्या मात्र २२ थी. इसके बाद के लोकसभा के चुनावों में इनकी संख्या बड़ी है. १३वी लोकसभा चुनावो में कुल ५४३ सीटों में महिलाओ कि संख्या ४२ थी. वर्ष २००९ में भारतीय संसद में ५८ महिलाएं लेजिस्लेटर के पद पर नियुक्त हुई परन्तु अब भी संसद में विजयी महिलाओं का प्रतिशत १० से भी कम है.
जब हम भारतीय राजनीति क़ी बात बात करते है तो आँखों के सामने एक प्रतिबिंब छा जाता है और वह कोई और नहीं बल्कि सोनिया गाँधी का बिम्ब होता है. सोनिया गाँधी कांग्रेस पार्टी क़ी अध्यक्ष हैं. राजीव गाँधी से विवाह करने के पश्चात् सब कुछ छोड़कर हिन्दुस्तान गयीं और राजीव गाँधी क़ी हत्या के बाद स्वयं राजनीति में आने का फैसला किया. विपक्षी पार्टियों को ये कतई मंजूर नहीं था कई एक विदेशी महिला भारत आकर देश की राजनीति का हिस्सा बने परन्तु उन्होंने तो देश सेवा का प्रण लिया था और यह तभी संभव था जब वह राजनीति में आतीं. .उनका जन्म दिसम्बर १९४६ में इटली के वनिटो शहर में हुआ. १९६९ में राजीव गाँधी से विवाह कर वह भारत आयीं. १९९८ में सोनिया गाँधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं. २००४ के चुनावों में सोनिया गाँधी रायबरेली से बड़े अंतराल से जीती. उस समय उन्हें प्रधानमंत्री के पद पर देखा जा रहा था परन्तु विपक्षी पार्टियों ने उन्हें विदेशी मूल का कहकर इस पद पर आने पर जोर दिया. यहाँ तक की भारतीय नागरिकता एक्ट के सेक्शन के तहत इस बात का दावा किया कि वे विदेशी मूल कि हैं और भारत के प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त नहीं हो सकती परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को ख़ारिज कर दिया. चुनाव के कुछ समय बाद सोनिया गाँधी ने १८ मई २००४ को प्रधानमंत्री पद के लिए नियुक्त किया. ऐसा करके उन्होंने इस बात को सिद्ध किया कि वह भारतीय राजनीति में मात्र लाभ कमाने के उद्देश्य से नहीं आयीं है बल्कि सच्ची राजनीति और देशसेवा करने आयीं हैं. चुनाव से पहले घोषणापत्र में उन्होंने इस और संकेत कर दिया था कि वह प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहती.UPA के अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजग़ार योजना और सूचना के अधिकार अधिनियम के शेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सोनिया गाँधी के प्रतिनिधित्व में UPA सरकार ने २००९ के चुनाव में २०६ लोकसभा सीटे जीती जो बहुमत के काफी करीब थी. सोनिया गाँधी ने सूखा पीड़ितों और गरीबों के लिए भी सराहनीय कार्य किये है. संसद के सदस्यों कि आय का २० प्रतिशत भाग सूखा प्रभावित पीड़ितों के लिए इकठ्ठा किया. ऐसे कई उदाहरण है जो यह साबित करते हैं कि सोनिया गाँधी उन सभी महिलाओ के लिए प्रेरणा है जो भारतीय राजनीति में आकर देश के विकास और देश के हित के लिए कार्य करना चाहती हैं. २००४ में फ़ोर्ब्स मेग्जिन ने सोनिया गाँधी को विश्व की शक्तिशाली महिलाओं में तीसरा स्थान प्रदान किया और २००७ में सातवाँ स्थान प्रदान किया. यदि भविष्य में सोनिया गाँधी प्रधानमंत्री बनती हैं तो वह नेहरु-गाँधी परिवार की चौथी सदस्य होंगी जो जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी के बाद चौथी प्रधानमंत्री होंगी.
भारतीय राजनीति में सोनिया गाँधी एक आदर्श हैं. वही दूसरी ओर अन्य कई उदाहरण हमारे सामने है जो यह सिद्ध करते हैं कि आज महिलाएं राजनीति में एक अलग स्थान बना रही हैं. जिनमे मीरा कुमार (लोकसभा की पहली महिला स्पीकर) और प्रतिभा पाटिल(देश की पहली महिला राष्ट्रपति) का नाम सर्वोपरि है.वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर यह कहा जा सकता है कि भविष्य में महिलाएं राजनीति में बढ चढ़ कर हिस्सा लेंगी और देश हित के लिए कार्य करेंगी.

Saturday, August 14, 2010

न जाने क्यों......














जाने क्यों,
सब कुछ ख़त्म होता नज़र आ रहा है,
अपनों से दूर जाने का गम सता रहा है...

भला कैसी है ये रीत,
जो अपनों को दूर और गैरो को पास ला रहा है...

याद आएगा हर वो पल,
जिसमे थी खुशियाँ और थोड़े गम...

तड़प उठेगा ये दिल,
जब याद आयेगी माँ की गोद और प्यार भरी पिता की ओट...

याद आएगा हर वो लम्हा,
जो गुजरा दोस्तों के साथ,
जिसमे थी थोड़ी मस्ती और थोडा प्यार...

बस कुछ दिन और,
सब कुछ बदल जायेगा,
जीने का सलिखा और नज़रिया भी बदल जायेगा...

जहाँ बनानी होगी एक पहचान,
नहीं होगी वो स्वयं की पहचान,
किसी और की दी होगी वो पहचान...

(विवाह से पहले हर लड़की के भीतर ऐसी ही भावनाये उमड़ती है)

Sunday, August 8, 2010













माँ का दर्द
चारो तरफ खुशियों का माहोल था. सब एक दूसरे को बधाई दे रहे थे. हर कोई एक दूसरे को बधाई देकर एक ही बात कह रहा था मुबारक हो!! बेटा हुआ है. नवजात बच्चे को देखने आने वाले लोगो का ताँता लगा हुआ था और सभी का मुह मीठा करवाया जा रहा था. पर कुछ ही समय बाद डॉक्टर ने बताया कि बच्चे की हालत ठीक नहीं है और जल्द ही बच्चो के अस्पताल में भर्ती कराना होगा. इतना सुनते हे वहां मोजूद सारी महिलाएं रोने -पीटने लगी और बच्चे की माँ को कोसने लगी क्योकि माँ की ही जिद्द थी कि वह बच्चे को जन्म अस्पताल में देगी न कि किसी दायी के हाथों. कुछ दकियानूसी महिलाएं डॉक्टर को ही अपशब्द कहने लगी. देखते देखते जच्चा और बच्चा दोनों को घर ले आया गया. बच्चे की माँ रोती बिलखती रही, अपने बच्चे कि जिन्दगी बचाने की दुहाई देती रही पर कुछ लोगो की दकियानूसी सोच के कारण बच्चे ने इलाज के आभाव में दम तोड़ दिया और एक माँ को बच्चे से हमेशा के लिए अलग कर दिया. फिर क्या था हम इंसानों कि गलतियों के कारण एक मासूम जान हमसे दूर हो गयी. खुशियों का माहोल गमगीन माहोल में बदल गया.
ये घटना एक सच्ची घटना है जो २७ जुलाई को मेरे घर के ही एक पड़ोस के मकान में घटी. इस घटना का यथार्थ वर्णन मेरी माँ ने किया और मैं इसे आज लिपिबद्ध कर रही हूँ. ये मात्र एक घटना ही नहीं है. ये अपने साथ कई ऐसे प्रश्नों को भी खड़ा कर रही है जिनके जवाब हमे हे खोजने हैं. आखिर कब तक शिक्षा के अभाव में लोग अन्धविश्वास के साएँ में जीते रहेंगे.. आखिर क्यों एक स्त्री दूसरी स्त्री को मनहूस और कलंकनी जैसे शब्दों से संबोधित करती है. भले ही सरकार और कुछ गैर सरकारी संस्थाएं गाँव और शहरों में शिक्षा के स्तर पर कई जागरूक कार्यक्रम चला रही है पर हमे खासकर युवा पीड़ी की भी ये ज़िम्मेदारी है कि हम जगह-जगह खासकर गाँव में जाकर लोगो को शिक्षा के महत्त्व के बारे में बताये और उन्हें इस बात के लिए तैयार करे कि वे घरों से बाहर आये और स्कूल कालेजों तक पहुंचे. भारत में ऐसी घटनाये आये दिन घटती है जो शिक्षा के अभाव में घट रही हैं. इन्हें रोकने के लिए शिक्षा का प्रसार व प्रचार बेहद जरुरी है.