रिश्ते सिर्फ खून के ही नहीं होते. कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते है या कह सकते है कि संजोग से बन जाते है और ये रिश्ते उन्ही से बनते है जिनसे हमे स्नेह, प्रेम, और आदर मिलता है. इस भागदौड़ भरी जिन्दगी में जब अपनों के पास समय नहीं है ऐसे में कोई अन्जान व्यक्ति आपको वो सब दे जिसकी सिर्फ अपनों से ही पाने कि उम्मीद हो तब वो व्यक्ति अन्जान न होकर आपके जीवन का एक अहम् हिस्सा बन जाता है.साथ ही उसे खो देने का डर हमेशा मन में बना रहता है.
बात पिछले वर्ष की है. बसों में सफ़र करना शुरू ही किया था. मन में एक डर था क्योंकि इस से पहले बसों में सफ़र करने का मौका ही नहीं मिला था. घर से निकलने से पहले पिताजी हिदायतें देते कि बस में कैसे चड़ना है, कैसे उतरना है, किस जगह बैठना है आदि. इस तरह बस में आना जाना शुरू हुआ और धीरे-धीरे मन का डर निकलता गया. डर की बात करे तो वो एक अन्जान डर था जिसे बताना थोडा मुश्किल है पर एक अन्जान व्यक्ति के कारण अब वो डर भी निकल गया. पूरे सफ़र के दौरान ऐसा प्रतीत होता कि एक रक्षक आपके साथ है और वो आपके साथ कुछ बुरा होने ही नहीं देगा.बस में चढ़ते ही एक अंजान हाथ सामने आ जाता जिसमे पानी की एक बोतल हुआ करती. ये देखकर एक मुस्कान चेहरे पर आ जाती कि बिना जाने पहचाने वह स्वयं समझ जाता कि मैडम जी को प्यास लगी है.वह हमेशा "मैडम जी" कहकर पुकारता था और ये शब्द सुनकर चेहरे कि मुस्कान और बढ़ जाती क्योंकि उसमे आदर और सम्मान कि भावना जो हुआ करती थी. बात सिर्फ यही ख़त्म नहीं होती. जब भरी गर्मी में सूरज की किरणे खिड़की के शीशे को चीरते हुए मुझ तक पहुँचती तो चुपचाप एक पुराना अखबार हाथ में लिए सीट की और बड़ा चला आता और उन चमकती किरणों को रोक देता. इतना करने के बाद मासूमियत से पूछता कि अब ठीक है ना मैडम जी.! और मैं मुस्कुरा कर उसे धन्यवाद दे देती.
धीरे-धीरे बातों का सिलसिला भी शुरू हुआ.चूंकि वह अपने माता-पिता से दूर दिल्ली जैसे बड़े शहर में अकेला रह रहा था तो अपनी हर छोटी बड़ी बात बताता. साथ ही जरुरत पढने पर किसी मुद्दे पर राय भी मांग लिया करता था. पर एक दिन अचानक वो अन्जान व्यक्ति जिससे एक अन्जाना सा रिश्ता बन गया था, कहीं गायब हो गया. दुआ करती कि इश्वर वो जहाँ भी हो स्वस्थ हो और खुश हो.. बस में चढ़ते ही नजरे उस अन्जान हाथ को तलाशती जो पानी की बोतल लिए अचानक से उसकी ओर बढ़ जाते थे. पर वो दुबारा सामने नहीं आया.
लेकिन इश्वर कि लीला देखिये दो महीने बाद वह फिर सामने आया ओर उसके मुख से वही दो शब्द सुनकर दिल भर आया. ये दो शब्द "मैडम जी" सुनने में बेहद साधारण है पर इनके अंदर छिपा प्रेम ओर आदर असाधारण है. मैंने निश्चय कर लिया कि अब इस अन्जान रिश्ते को एक नाम दे दिया जाए ताकि वो जीवन भर मेरे साथ, मेरे जीवन का एक अहम् हिस्सा बनकर रहे. कुछ समय पहले तक दोनों के बीच जो एक अन्जान सा रिश्ता था आज उस रिश्ते ने एक नाम पा लिया है. आज वो मेरा छोटा पर जिम्मेदार भाई बनकर मेरे साथ है. रिश्ते सिर्फ खून से ही नहीं बनते. रिश्ते इंसानियत ओर भावनाओ से भी बनते है फिर चाहे वो बस का एक मामूली कंडक्टर ही क्यों ना हो...
बात पिछले वर्ष की है. बसों में सफ़र करना शुरू ही किया था. मन में एक डर था क्योंकि इस से पहले बसों में सफ़र करने का मौका ही नहीं मिला था. घर से निकलने से पहले पिताजी हिदायतें देते कि बस में कैसे चड़ना है, कैसे उतरना है, किस जगह बैठना है आदि. इस तरह बस में आना जाना शुरू हुआ और धीरे-धीरे मन का डर निकलता गया. डर की बात करे तो वो एक अन्जान डर था जिसे बताना थोडा मुश्किल है पर एक अन्जान व्यक्ति के कारण अब वो डर भी निकल गया. पूरे सफ़र के दौरान ऐसा प्रतीत होता कि एक रक्षक आपके साथ है और वो आपके साथ कुछ बुरा होने ही नहीं देगा.बस में चढ़ते ही एक अंजान हाथ सामने आ जाता जिसमे पानी की एक बोतल हुआ करती. ये देखकर एक मुस्कान चेहरे पर आ जाती कि बिना जाने पहचाने वह स्वयं समझ जाता कि मैडम जी को प्यास लगी है.वह हमेशा "मैडम जी" कहकर पुकारता था और ये शब्द सुनकर चेहरे कि मुस्कान और बढ़ जाती क्योंकि उसमे आदर और सम्मान कि भावना जो हुआ करती थी. बात सिर्फ यही ख़त्म नहीं होती. जब भरी गर्मी में सूरज की किरणे खिड़की के शीशे को चीरते हुए मुझ तक पहुँचती तो चुपचाप एक पुराना अखबार हाथ में लिए सीट की और बड़ा चला आता और उन चमकती किरणों को रोक देता. इतना करने के बाद मासूमियत से पूछता कि अब ठीक है ना मैडम जी.! और मैं मुस्कुरा कर उसे धन्यवाद दे देती.
धीरे-धीरे बातों का सिलसिला भी शुरू हुआ.चूंकि वह अपने माता-पिता से दूर दिल्ली जैसे बड़े शहर में अकेला रह रहा था तो अपनी हर छोटी बड़ी बात बताता. साथ ही जरुरत पढने पर किसी मुद्दे पर राय भी मांग लिया करता था. पर एक दिन अचानक वो अन्जान व्यक्ति जिससे एक अन्जाना सा रिश्ता बन गया था, कहीं गायब हो गया. दुआ करती कि इश्वर वो जहाँ भी हो स्वस्थ हो और खुश हो.. बस में चढ़ते ही नजरे उस अन्जान हाथ को तलाशती जो पानी की बोतल लिए अचानक से उसकी ओर बढ़ जाते थे. पर वो दुबारा सामने नहीं आया.
लेकिन इश्वर कि लीला देखिये दो महीने बाद वह फिर सामने आया ओर उसके मुख से वही दो शब्द सुनकर दिल भर आया. ये दो शब्द "मैडम जी" सुनने में बेहद साधारण है पर इनके अंदर छिपा प्रेम ओर आदर असाधारण है. मैंने निश्चय कर लिया कि अब इस अन्जान रिश्ते को एक नाम दे दिया जाए ताकि वो जीवन भर मेरे साथ, मेरे जीवन का एक अहम् हिस्सा बनकर रहे. कुछ समय पहले तक दोनों के बीच जो एक अन्जान सा रिश्ता था आज उस रिश्ते ने एक नाम पा लिया है. आज वो मेरा छोटा पर जिम्मेदार भाई बनकर मेरे साथ है. रिश्ते सिर्फ खून से ही नहीं बनते. रिश्ते इंसानियत ओर भावनाओ से भी बनते है फिर चाहे वो बस का एक मामूली कंडक्टर ही क्यों ना हो...