Thursday, September 2, 2010

मेरी हरिद्वार-ऋषिकेश यात्रा
















जब व्‍यक्ति के मन में कई प्रश्‍न हों और मन विचलित हो तो उसे एकांत व शांति की जरूरत होती है। मेरे जीवन में भी एक समय ऐसा आया जब ज़हन में कई प्रश्न थे और मन शांत नहीं था। इन सभी प्रश्‍नों का सरोकार जीवन के प्रति मेरे उत्‍तरदायित्‍व से था। ऐसे समय में मुझे थोडे वक्‍त की जरूरत थी, साथ ही शांति की भी। तभी मुझे पता चला कि मेरे अंकल आंटी शांतिकुंज - ऋषिकेश की यात्रा पर जा रहें हैं। उन्‍होंने मुझे भी साथ चलने के लिए पूछा और मैंने तुरंत चलने के लिए हां कर दी। मुझे इसका आभास हो गया था कि मेरे मन में उठे प्रश्‍नों का जबाब मुझे वहीं जाकर मिल सकता है। मैंने अपने माता-पिता की अनुमति लेकर चलने की तैयारी शुरू कर दी। प्रात: 6 बजे हम सभी अपनी गाडी से शांतिकुंज के लिए रवाना हो गए। हमने कपडे और खाने-पीने के समान के अलावा साथ में कुछ दवाईयां भी ले रखी थी। प्रात: काल का समय था और ड्राइवर ने गाडी में भजन चला रखा था।
मेरे विचलित और परेशान मन को उसी समय से शांति और सुकून मिलने लगा था। करीब 9 बजे खतौली पहुंचकर हमने गाडी को थोडा विराम दिया। वहां हम चीतल नामक एक बडे होटल में नाश्‍ता करने गए। उसी समय एक अजीब शोर सुनाई दिया। फिर पता चला कि कांग्रेस पार्टी के एक बडे नेता जगदिश टाइटलर वहां आ रहें हैं बाहर आकर देखा कडी सुरक्षा के बीच टाइटलर जी अंदर पधार रहें है। उनके लिए पहले से ही एक टेबल बुक था जहां उन्‍होंने नाश्‍ता किया। इसके बाद हम सभी वापस गाडी में आ गये । ड्राइवर ने भी पूरी रफ्तार से गाडी बढाई और दोपहर 1 बजे तक हमें शांतिकुंज पहुंचा दिया। शांतिकुंज हरिद्वार से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वहां बेहद शांति और सुकून है। मेरे अंकल शांतिकुंज समिति के सदस्‍य हैं इसलिए हमें तुरंत कमरा मिल गया। वहां जाकर हम सभी ने स्‍नान किया और कुछ देर विश्राम किया।
विश्राम के बाद हम सभी हर की पौडी ( गंगा घाट) पहुंचे। वहां हम सभी ने स्‍नान किया। कहते हैं कि गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। कुछ देर पश्‍चात ही गंगा मैया की आरती शुरू हो गई। सभी भक्‍तजन घाट के करीब आकर खडे हो गए। वहां की भीड देखकर मेरा मन घबराने लगा परन्‍तु जैसे ही आरती शुरू हुई सभी भक्‍तजन भक्ति में लीन हो गए। मै भी ऐसी भव्‍य आरती देखकर अपने आप को रोक न पाई और तुरंत घाट के करीब जाकर आरती में शामिल हो गई।
10 मिनट की आरती में ऐसा लगा ईश्‍वर से मेरा साक्षात्‍कार हो गया हो और मेरी आंखो में आंसू छलक आए। ऐसा इसलिए हुआ क्‍योंकि मैं जिन जिज्ञासाओं और प्रश्‍नों को लेकर यहां आई थी, मुझे उनके जबाब मिलनें लगे थे। मुझे जीवन का एक नया लक्ष्‍य मिल रहा था। आरती के बाद हम सभी ने आम के पत्‍तों में फूल व दीपक लिए और पूरी श्रद्धा के साथ गंगा में उन्‍हें प्रवाहित कर दिया। अंधेरे में जलते दीपक ऐसे लग रहे थे, मानों वे जीवन को एक दिशा व लक्ष्‍य दे रहें हों। उस दृश्‍य को देखकर ऐसे सुख का अनुभव हो रहा था जैसे एक बालक को अपनी मां के गोद में बैठकर मिलता है।
इसके पश्‍चात हम वापस शांतिकुंज आ गये। पूरे दिन सफर करने के बाद हम इतने थक गये थे कि बिस्‍तर पर जाते ही नींद आ गयी। प्रात:काल 5 बजे उठकर हम सभी ने स्‍नान किया और हवन में शामिल होनें चले गए। वहां गायत्री मंत्र का जाप हो रहा था। भीड अधिक होने के कारण हमें हवन करने के लिए 1 घंटे तक इंतजार करना पडा। पंडितजी ने बताया कि जो व्‍यक्ति हवन में किसी कारण शामिल नहीं हो पाता है तो यदि वह हवन कुंड की आठ परिक्रमा पूरी कर ले तो वही फल उसे मिलता है जो हवन करने वाले को मिलता है। इसके बाद हम शांतिकुंज के संस्‍थापक श्री शंकराचार्य जी और वन्‍दनीय माता जी के समाध‍ि पर गए।
शांतिकुंज से ही हम हरिद्वार में स्थित विभिन्‍न मंदिरों में गए। सर्वप्रथम हम भारतमाता मंदिर गए। इसकी सात मंजिलें है। इसमें विभिन्‍न देवी देवताओं, स्‍वतंत्रता सेनानियों, धर्म गुरूओं और कबीर जैसे महीन संतों की मूर्तियां हैं। इसके बाद हम ब्रह्यवर्चस्‍व मंदिर और वैष्‍णों देवी मंदिर गए। वैष्‍णों देवी का मंदिर स्‍वर्गीय गुलशन कुमार द्वारा बनवाया गया है। हरिद्वार में देव संस्‍कृति नामक एक विश्‍वविद्यालय भी है जो शंकराचार्य द्वारा स्‍थापित किया गया है। इसमें मुख्‍य रूप से योग और आयुर्वेद की शिक्षा दी जाती है। इसकी शाखाएं अन्‍य राज्‍यों में भी है।
इसके बाद हम विक्रम द्वारा ऋषिकेश पहुंचे। विक्रम एक वाहन है जो ऑटो रिक्‍शा के समान दिखता है। हम सभी सप्‍तऋषि आश्रम गए। यह आश्रम गंगा घट के किनारे ही बसा है। आश्रम से घाट का नजारा अदभुत दिखाई पडता है। सोनी जी इस आश्रम को चलातें हैं। वैसे तो वह विवाहित हैं पर अब वह अपना जीवन ईश्‍वर की अराधाना व तपस्‍या में व्‍यतीत करते हैं। संध्‍या के समय सोनी जी ने हमें कई विषयों पर महत्‍वपूर्ण बातें बताई जैसे - जीवन क्‍या है, मृत्‍यु क्‍या है, ईश्‍वर का अस्तित्‍व क्‍या है और मानव जीवन के रूप मे हमारे लक्ष्‍य क्‍या हैं? जि‍न प्रश्‍नों व जिज्ञासाओं को लेकर मै घर से निकली थी उनका जवाब मुझे सोनीजी के आश्रम में उनके प्रवचन द्वारा मिल चुके थे। उस दिन एक अनोखी मुस्‍कुराहट मेरे चेहरे पर थी, जिसे मेरे अंकल-आंटी ने भी पहचान लिया। इसके पश्‍चात हम वापस शांतिकुंज पहुंचे जहां गाडी हमारा इंतजार कर रही थी। हम वापस दिल्‍ली आ गए। हरिद्वार और शांतिकुंज ण्‍ेसे शहर हैं जो अध्‍यात्मिक शांति के लिए काफी महत्‍वपूर्ण हैं। यही कारण है कि मैं मन में एक अजीब अशांति और बोझ को लेकर गई थी और एक अनोखी मुस्‍कान चेहरे पर लिए लौटी थी।


3 comments:

  1. अच्छा वर्णन किया है.........

    अशांति गंगामाई में प्रवाहित कर आये .... बढिया .

    ReplyDelete
  2. पूजा जब मन में शांति का संचार कर दे, अनसुलझे प्रश्नों की गुत्थी को सुलझाने का रास्ता प्रदान करे तब वो सार्थक हो जाती है। आप सौभाग्यशाली हैं कि भगवन के सानिध्य ने आपको अपनी परेशानियों से निकलने में मदद की।

    रूड़की में रहते वक़्त कभी हर की पौढ़ी का यूँ ही चक्कर लग जाया करता था। सलीके से आपने यात्रा विवरण प्रस्तुत किया है।

    ReplyDelete
  3. Kabhi kabhi aisi jagaho par jakar hame shanti ka anubhav hota hei, aur hama apne kuch Questions ke answer bhi mil jate hei jiski wajah se hamare man mei ashanti ho rahi hoti hei

    Good, Keep it up
    God bless u always

    ReplyDelete