पुस्तकः खेद नहीं है कटाक्ष
लेखिकाः मृदुला गर्ग
प्रकाशकः किताबघर प्रकाशन
मूल्यः दौ सो पच्चीस रूपय
व्यक्ति अपने जीवनकाल में अच्छे-बुरे हर तरह के अनुभव प्राप्त करता है। साथ ही उन्हें अन्य लोगों के साथ बांटना भी चाहता है। ‘खेद नहीं है कटाक्ष’ नामक पुस्तक में मृदुला गर्ग ने अपने जीवनकाल में प्राप्त किए गए अनुभवों को पाठको के साथ बांटा है। पुस्तक में संकलित सभी 58 लेखों में कटाक्ष संगृहित है और ये कटाक्ष व्यंग्य या हास्य से भिन्न है। ये सभी लेख पहले पहल ‘इंडिया टुड’े नामक पत्रिका के ‘कटाक्ष’ स्तंभ के अंतर्गत प्रकाशित हुए है। अब पाठक इन कटाक्षपूर्ण लेखों को इस पुस्तक के माध्यम से भी पढ़ सकते है। पुस्तक में संगृहित कई लेख हिन्दी भाषा की दुर्व्यवस्था को लेकर लिखे गए है। जैसे- ‘मॉं बोली नहीं, पूत बोली’, ‘फिर वहीं हिंदी हिंदी’, ‘खत्म हुआ हिंदी का स्यापा’, और ‘खतरों के बीच भाषा’ लेखों मे उन लोगो पर कटाक्ष किया गया है,जिन्होंने हिंदी को हिंग्लिश या हिंग्रेजी बना कर रख दिया है। भारत में पानी को लेकर भी कई समस्याएं है जो ज्यांे की त्योें बनी हुई है। ‘अब क्या करें पानी पानी’, ‘दो नदियों का सच’ और ‘साफ पानी की साध’ नामक लेखों में पानी के अनियमित वितरण और पूजा पाठ के नाम पर नदियों को गंदा करने की प्रवृति को उजागर किया गया है। व्यक्ति अपने जीवनकाल में अनेक बुरे कर्म करता है और उसके प्रभाव को खत्म करने के लिए गंगा में डुबकी लगाता है। ऐसा करके वह अपने पाप तो धो लेता है पर नदियों को दूषित कर देता है। वहीं दूसरी ओर बिजली की अनियमित सप्लाई को लेकर भी एक लेख ‘हर बार हम ही क्यों’ लिखा गया है जिसमें उन सभी सरकारी अफसरों पर कटाक्ष किया गया है जो ईश्वर की तरह अदृश्य है। ये अफसर बिना हाथ पैर चलाए सरकारी खजा़ने को खाली कर रहे है।
‘मोबाइल शोबाइल’ और ‘बोल मुफत में बोल’ नामक लेखों में मोबाइल के प्रचलन व उनके अनुचित प्रयोग को बतलाया गया है। लेखिका लिखती हैं-“किस्मत अच्छी होती है तो हमारे मोबाइल की बैटरी खल्लास हो जाती है, नही ंतो हमारी सारी सुबह और दोपहर खल्लास हो जाती है।” लेखिका ने राजनीतिक विषय पर भी अनेक लेख लिखे है जिनमें ‘तू नहीं और सही’, नेता नाम त्याग का’ और ‘मंत्री माने भगवान’ उल्लेखनीय है। इन सभी लेखों में उन सभी नेताओं पर कटाक्ष किया गया है जो केवल मतदान के समय ही जनता से रूबरू होते है और संपूर्ण शासनकाल में मिस्टर इंडिया की तरह गायब रहते है।
मृदुला गर्ग ने अपनी पुस्तक में लगभग सभी विषयों पर लेख लिखे हैै। फिर वह सामाजिक हो, रातनीतिक हो या आर्थिक। लेखिका ने अपने जीवनकाल में घटित विभिन्न घटनाओं को जैसे देखा और महसूस किया, उसे बिना किसी लाग लपेट के प्रस्तुत कर दिया। साथ ही अपनी भूूमिका में स्पष्ट कहा है-“हम स्वीकार करते है कि इनमें से कुछेक को पढ़कर आप तिलमिलाए तो हमे खेद नहीं होगा। पढ़-गुन लेने पर, हमसे आधी भी खलबली आपके ज़हन में मच पाई तो हम धन्य महसूस करेंगे।“यदि बात पुस्तक के बाह्य सौन्दर्य की करे तो बाहरी आवरण रंगीन और बेहद सुंदर है। भाषा सरल पर कटाक्षपूर्ण है। प्रत्येक लेख का विषय इतना प्रांसगिक हैं कि पाठक सभी लेखों को पढ़ने पर मजबूर हो जाएगा।
‘मोबाइल शोबाइल’ और ‘बोल मुफत में बोल’ नामक लेखों में मोबाइल के प्रचलन व उनके अनुचित प्रयोग को बतलाया गया है। लेखिका लिखती हैं-“किस्मत अच्छी होती है तो हमारे मोबाइल की बैटरी खल्लास हो जाती है, नही ंतो हमारी सारी सुबह और दोपहर खल्लास हो जाती है।” लेखिका ने राजनीतिक विषय पर भी अनेक लेख लिखे है जिनमें ‘तू नहीं और सही’, नेता नाम त्याग का’ और ‘मंत्री माने भगवान’ उल्लेखनीय है। इन सभी लेखों में उन सभी नेताओं पर कटाक्ष किया गया है जो केवल मतदान के समय ही जनता से रूबरू होते है और संपूर्ण शासनकाल में मिस्टर इंडिया की तरह गायब रहते है।
मृदुला गर्ग ने अपनी पुस्तक में लगभग सभी विषयों पर लेख लिखे हैै। फिर वह सामाजिक हो, रातनीतिक हो या आर्थिक। लेखिका ने अपने जीवनकाल में घटित विभिन्न घटनाओं को जैसे देखा और महसूस किया, उसे बिना किसी लाग लपेट के प्रस्तुत कर दिया। साथ ही अपनी भूूमिका में स्पष्ट कहा है-“हम स्वीकार करते है कि इनमें से कुछेक को पढ़कर आप तिलमिलाए तो हमे खेद नहीं होगा। पढ़-गुन लेने पर, हमसे आधी भी खलबली आपके ज़हन में मच पाई तो हम धन्य महसूस करेंगे।“यदि बात पुस्तक के बाह्य सौन्दर्य की करे तो बाहरी आवरण रंगीन और बेहद सुंदर है। भाषा सरल पर कटाक्षपूर्ण है। प्रत्येक लेख का विषय इतना प्रांसगिक हैं कि पाठक सभी लेखों को पढ़ने पर मजबूर हो जाएगा।
धन्यवाद्
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